@खेतिकिसानी
किसान साथियों, भारत एक कृषि प्रधान देश है | यहाँ पर सभी प्रकार की जलवायु पाई जाती है | तथा विभिन्न प्रकार की फसलें बोई जाती है | इसमें मुख्य रूप से गेहूँ, मक्का, चावल, बाजरा, सोयाबीन, आदि प्रमुख है | इनमे से मक्का की फसल ऐसी फसल है जिसकी अधिकांश जलवायु में पैदावार होती है |
वर्तमान में खरीफ की फसल मक्का की बुवाई का काम चल रहा है | तथा कई जगहों पर इसकी फसल 7 से 10 सेंटीमीटर तक बड़ी हो चुकी है | इस फसल में एक रोग लगता है जिसमें फसलो को काफी ज्यादा नुकसान होता है | यह रोग एक किट द्वारा लगता है जिसे किसान आम भाषा में “इल्ली लगना” कहते है | यह किट मक्का, सोयाबीन, तिलहन, गन्ना, धान आदि फसलो के साथ 180 प्रकार के पादपों को भारी मात्रा में नुकसान पहुँचाता है |
तो आइये जानते है ये इल्ली कोनसा किट है तथा इसके लक्षण तथा नियंत्रण के बारे में |
Table of Contents
किट का नाम तथा उत्पत्ति
साथियों, इस किट का नाम फ़ॉल आर्मी वर्म किट होता है | यह किट सबसे पहले अमेरिका में 2015 में पाया गया था | इसके बाद यह किट दक्षिणी अमेरिका होते हुए अफ्रीका पहुँच गया | वहाँ पर मक्का की फसलो को भारी नुकसान पहुँचाया | इस किट के प्रभाव से लगभग अफ्रीका में 3 अरब अमरीकन डॉलर का नुकसान हुआ | यह अफ्रीका के 54 देशो में से 44 देशो में फ़ैल चूका है जिससे यह किट अब एक विश्व्यापी खतरा बन चूका है |

इसके बाद 2018 में यह किट भारत पहुँचा | भारत में सबसे पहले यह किट कर्नाटक के शिवमोगा में मक्का की फसल पर पाया गया | इसके बाद 2019 तक ये कर्नाटक से होता हुआ आँध्रप्रदेश , गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान के बहुत बड़े भाग में फ़ैल गया
किट की वैज्ञानिक थ्योरी
फ़ॉल आर्मी वर्म किट का वैज्ञानिक नाम स्पोडोप्टेरा परुजिपरेडा होता है | यह लेपिडोप्टेरा गण में नोक्ट्युडी परिवार का सदस्य है | जो कि धान, गन्ना, कपास, मक्का के साथ साथ 180 फसली पादपों को नुकसान पहुँचा सकता है |
किट का फैलाव
साथियों यह किट मानसून के आगमन साथ ही सक्रीय हो जाता है | जिससे मानसून ठहराव काल में शुष्क मौसम होने पर इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां हो जाती है | जिससे इसका प्रकोप फसल के उगने के 10 से 15 दिन बाद ही दिखना शुरू हो जाता है | तथा फसल के पकने तक रहता है | कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि अगर एक किसान ने अपने खेत में फ़ॉल आर्मी वर्म से सुरक्षा के लिए कीटनाशक का छिडकाव कर दिया है | तथा साथ ही पडौसी किसान ने अपने खेत में कीट का उपचार नहीं किया है तो इससे दोनों ही किसानो की फसलो को नुकसान होगा | तथा फसली नुकसान नहीं रुक पायेगा |
कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि इस कीट का नियंत्रण टिड्डियो के नियंत्रण से भी कठिन होता है | क्योंकी कीट का प्रभाव नुकसान के बाद दिखाई देता है | इस कीट की उड़ान क्षमता दुसरे किटो से ज्यादा है | इस किट की तितली 24 घंटो में 100 किलोमीटर तक उड़कर अंडे देने की क्षमता रखती है | इसलिए इसका नियंत्रण कम्युनिटी बेस पर होना जरुरी है |
फैलने का कारण तथा अनुकूल वातावरण
उष्ण कटिबंधीय व अर्द्ध उष्ण कटिबंधीय इस कीट के लिए अनुकूल वातावरण है | तथा जहाँ पर मक्का देर से उगाई जाती है वहाँ पर भी यह कीट अनुकूलित होकर मक्का को 70 से 80 % तक नुकसान पहुँचाता है | कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि इसके वर्तमान में फैलने का मुख्य कारण मौसम की अनुकूलता है | सबसे पहले ताउते तूफान के कारण मौसम ठंडा हो गया | फिर पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्तमान मौसम शुष्क बना हुआ है | जिसकी वजह से इस कीट को एक जगह से दूसरी जगह जाने में या माइग्रेट होने में मदद मिल रही है | जिससे फ़ॉल आर्मी वर्म का प्रसार तेजी से हो रहा है |पहचान तथा
जीवन चक्र



फ़ॉल आर्मी वर्म कीट एक मोथ यह तितली समान होता है | इसकी लार्वा अवस्था सबसे घातक होती है जो फसलो को नुकसान पहुँचाती है |फ़ॉल आर्मी वर्म कीट के एक वर्ष में 10 जीवन चक्र होते है | मादा एक बार में 200 अंडे देती है | यह अंडे 3 से 4 दिन तक लार्वा अवस्था में रहते है | इसके बाद लार्वा से प्यूपा बनता है | और 3 से 4 दिन बाद प्यूपा से मोथ ( तितली ) अवस्था में आ जाता है | इसके बाद फिर से मेटिंग या अंडे देने का काम शुरू हो जाता है | इस तरह अंडे हजारो की संख्या तक पहुँच जाते है | इसका प्रकोप बुवाई के 10 दिन से फसल पकने तक होता है | तथा यह भुट्टे को भी नुकसान पहुंचाता है | लगभग 14 दिन में अपनी सभी अवस्थाएँ पूर्ण कर यह कीट जमीन पर गिरकर अन्दर चला जाता है तथा जमीन में शंकु अवस्था पूर्ण करता है |
फ़ॉल आर्मी वर्म कैसे करता है नुकसान ?



इस कीट के नवजात लार्वा को इल्ली या सुंडी कहा जाता है | कीट की इल्ली या सुंडी मक्का के पौधे के तने में छेद करके अन्दर घुस जाती है | फिर जैसे जैसे पौधा बड़ा होता है | पत्तियों पर एक पंक्ति में छेद दिखाई देने लगते है | जो कि इसके शुरूआती लक्षण है | जैसे जैसे सुंडी या इल्ली बड़ी होती जाती है पौधे के अन्दर के भाग को खाती रहती है | जिससे पत्तियां कटी फटी दिखाई देने लगती है |
जिस जगह सुंडी खाती है उस जगह बहुत सारी विष्ठा एकत्रित हो जाती है जो इस कीट से ग्रसित पौधो की पहचान का मुख्य लक्षण है | खेत में सुंडी या इल्लियो की संख्या बढ़ जाने के बाद यह मक्का के भुट्टो के दानो को खाती है | जिससे मक्का के भुट्टे में भी हमें विष्ठा दिखाई देती है |
अधिक आक्रमण के कारण पौधा छोटा रह जाता है जिससे मक्का की पैदावार में 15 से 75 प्रतिशत तक का नुकसान किसानो को होता है |
फ़ॉल आर्मी वर्म रोकथाम
इस कीट के नियंत्रण के लिए कई कीटनाशक काम में लिए जाते है | लेकिन इमामेक्टिन बेंजोएट इस कीट के नियंत्रण में सबसे ज्यादा प्रभावी होता है | किसान इस रसायन या केमिकल को 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे मशीन की सहायता से इसका छिडकाव कर सकते है |
किसान कार्बोफ्युरोंन 3 जी. 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पौधे के ग्रसित भाग में डाले |
( स्त्रोत : डॉ. दिलीप सिंह )
इसकी लारवल अवस्था पर नियंत्रण हेतु स्पिनोसेड 45 SC की 0.3 मिली. या थायोमेथोक्सोम 12.6 % + लेम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 9.5 % ZC की 0.3 मिली. या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 % SC की 0.3 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव कर दे |
कृषि विशेषज्ञ विक्रम एवं दिनेश जाट (किसान खाद बीज भंडार – भींडर) ने बताया कि फॉल आर्मी वर्म किट की रोकथाम के लिए किसान इमामेक्टिन बेंजोएट 15 ग्राम + प्रोफेनो साइपर 40 ml प्रति टंकी मक्का के ऊपर छिड़काव करे
( किसान खाद बीज – भींडर )
इसका पूर्णतया नियंत्रण तभी संभव है जब सभी किसान एक जुट होकर स्प्रे करे वर्ना पड़ोस के खेत से आपके खेत में प्रवेश कर सकती है !
किसान साथियों, आशा करते है कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से इल्ली या फ़ॉल आर्मी वर्म के लक्षण, भारी नुकसान तथा नियंत्रण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल चुकी होगी जिसे आप अपने खेतो में इल्ली नियंत्रण में प्रयोग करेंगे तथा इससे होने वाले नुकसान से बच जायेंगे |
धनयवाद
टेक मेवाड़ी टीम
गमेर सिंह राणावत
जीवन चौबीसा हिन्ता